हमें अपने इतिहास से कुछ तो ज़रूर सीखना होगा

We must learn something from our history

Dec 2, 2023 - 22:11
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हमें अपने इतिहास से कुछ तो ज़रूर सीखना होगा

 कभी-कभी मेरे मन में विचार आता है कि हमारा समाज न तो इतिहास को सही मायने में पढ़ता है, न जानना चाहता है और न ही इतिहास से कोई सीख लेना चाहता है, चाहे वह खुद इतिहास बनकर रह जाए। इतिहास पर नज़र डालें तो पाएंगे कि भारत एक विशाल देश था। यह देश एक ओर से हिमालय पर्वत और तीन ओर से समुद्र से घिरा हुआ था। इस भौगोलिक स्थिति की वजह से बाहरी आक्रमणकारियों से पूर्णतया सुरक्षित था। धीरे-धीरे समुद्री यातायात बढ़े और सड़क मार्ग भी खुले। इससे व्यापार, शिक्षा की दृष्टि से, हिमालय एवं समुद्र के पार बसे हुए देश के लोग हमारे यहाँ आने लगे। चाहे वे चीन से आये हों या अरब से या साइबेरिया के जंगलों के पास से, उन लोगो ने देखा कि भारत एक सोने की चिड़िया है। पूर्णतया विकसित प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण, सभी सुख-सुविधाओं से सम्पन्न एक सभ्य राष्ट्र है। जहाँ का मूल मंत्र है -

सर्वे भवन्तु सुखिनःसर्वे सन्तु निरामयाः।

सर्वे भद्राणि पश्यन्तुमाँ कश्चिद्-दुःख-भाग-भवेत्।।

वहाँ के लोगों के लिए यह देश ही विश्व था, जिसे वह अपना एक कुटुम्ब मानते थे और कहते थे-‘‘वसुधैव कुटुम्बकम !’’इस देश में हर तरह का मौसम, हर तरह के फल, साग-सब्जी एवं अन्न पैदा होता था। विभिन्न भाषाएं एवं रीति रिवाज थे और सभी लोग एक-दूसरे की पूजा-पद्धति, रहन-सहन, खान-पान, शक्ल-सूरत, रंग-रूप, रहने के तौर-तरीके, विवाह एवं पारिवारिक नियमों का सम्मान करते हुए एक सभ्य समाज के रूप मंे रहते थे। प्रत्येक व्यक्ति के स्वभाव में सरलता, ईश्वर के प्रति अगाध श्रद्धा थी। लगभग सभी लोग सत्य के पुजारी थे। असत्य और हिंसा को पाप समझते थे। पशु-पक्षियों, जीव-जन्तुओं, वनस्पतियों, नदी-नालों, अग्नि, वायु एवं पानी, पहाड़ एवं धरती सभी का सम्मान करते थे और उनकी पूजा करते थे।

इस देश में जो आया उसी ने लूटा-यहाँ जो व्यापारी या तो हिमालय पार से या साइबेरिया के जंगलों के पास से आये उनको लगा कि यहाँ तो थोड़ा छल-कपट, लोभ-लालच एवं थोड़ी ताकत दिखाकर अच्छी-खासी लूट की जा सकती है। क्योंकि उस वक़्त यह देश धन-धान्य से लबालब था। उन्होंने उपरोक्त तरीकों का इस्तेमाल किया, लूटपाट की एवं शनै-शनै इस देश के कुछ-कुछ हिस्सों पर अपना शासन भी स्थापित कर लिया। अरब के रेगिस्तान से कुछ भूखे, जाहिल, आततायी लोग आए और उन्होंने भी हमको लूटा, मारा, बलात्कार किया। उन्होंने हमारे मन्दिर तोड़े, हमारी स्त्रियों से बलात्कार किये, लेकिन हमने क्या किया ? हम कुछ भी नहीं कर पाये। वे दिन में विवाह में लूटपाट करते। जवान लड़कियों को उठा ले जाते। लिहाजा कमज़ोर होते भारतीय बचपन में ही लड़कियों की शादियां करने लगेे। अगर उसमें ही असुरक्षा हो तो बेटी पैदा होते ही मार देते थे। पढ़ने-लिखने में यह बुरा लगता है। लेकिन यही हमारी सच्चाई थी।

हमने 1000 सालों की दुर्दशा से कुछ नहीं सीखा। उल्टे आज हमारी जनसंख्या का एक हिस्सा उन्हीं अरबी अत्याचारियांे को अपना पूर्वज मानने लगी है। कुछ उन इसाइयों को अपना पूर्वज मानने लगी है.... यानि हम स्वाभिमानहीन लोग हैं, स्वतंत्रता मिलने पर भी हम मानसिक गुलाम ही रहे।

रुढ़ व्यवस्थाओं का मंथन नहीं करते हम-दूसरी तरफ हमारी व्यवस्थाएं भी सड़ी हुई हैं। हम ऊंच-नीच, छोटे-बड़े, जातिगत एवं सम्प्रदायगत भेदभाव में उलझे हुए हैं। हम छोटी-छोटी बातों पर आपस में लड़ना शुरू कर देते हैं। हमारे लिए हमारे देश की एकता एवं अखंडता प्राथमिकता पर नहीं है। हमारा समाज सिर्फ़ व्यक्तिगत स्वार्थ साधना पर ही चल रहा था और आज भी चल रहा है। हमने इन सभी नाकामियों का कभी मंथन ही नहीं किया। हमारे ऊपर जब आक्रमण हो रहे थे और हम जब एक युद्धकाल से गुज़र रहे थे, हमारी बहुसंख्यक जनसंख्या इस मानसिकता में थी कि ‘‘कोउ नृप होय हमें का हानि’’! मतलब उनको युद्ध से, राज्य से, राजा से कोई मतलब नहीं था। ये सब बस क्षत्रिय के काम थे। उनको करना है तो करें, नहीं करना तो नहीं करें। यही कारण था कि मुस्लिम आक्रमण से राजस्थान क्षेत्र छोड़कर समस्त भारत धराशायी हो गया था, क्योंकि राजस्थान में क्षत्रिय जनसंख्या अधिक थी तो संघर्ष करने में सफल रहे। ऐसे ही कुछ क्षेत्र और थे जो इसमें सफल हुए।

करोड़ों भारतीयों को चंद आतताइयों ने गुलाम बनाया-कभी कभी विचार आता है कि 1500 ई. के बाद के ब्रिटिश कितने साहसी और बुद्धिमान रहे होंगे, जिन्होंने एक ठण्डे प्रदेश से निकलकर, अनजान रास्ते और अनजान जगहों पर जाकर लोगों को गुलाम बनाया। अभी भी देखा जाए तो ब्रिटेन की जनसंख्या और क्षेत्रफल गुजरात के बराबर है लेकिन उन्होंने दशकों नहीं शताब्दियों तक दुनिया को गुलाम रखा। भारत की करोड़ों की जनसंख्या को मात्र कुछ लाख या हज़ार लोगों ने गुलाम बनाकर रखा और केवल गुलाम ही नहीं बनाया बल्कि खूब हत्याएं और लूटपाट की। उन्हें अपनी कौम पर कितना गर्व होगा कि उनके मुट्ठी भर लोग दुनिया को नाच नचाते रहे। भारत के एक जिले में शायद ही 50 से ज़्यादा अंग्रेज रहे होंगे, लेकिन लाखों लोगों के बीच अपनी धरती से हज़ारों मील दूर आकर अपने से संख्या में कई गुना अधिक लोगों को इस तरह गुलाम रखने के लिए अद्भुत साहस रहा होगा।

हमारे लोगों ने हमें ही निशाना बनाया-अगर इतिहास देखते हैं तो पता चलता है कि उनके पास हम पर अत्याचार करने के लिए लोग भी नहीं थे तो उन्होंने हममें से ही कुछ लोगों को भर्ती किया था, हम पर अत्याचार करने के लिए, हमें लूटने के लिए। सोचकर ही अजीब लगता है कि हम लोग अंग्रेजों के सैनिक बनकर, अपने ही लोगों पर अत्याचार करते थे। चंद्रशेखर, बिस्मिल जैसे मात्र कुछ गिनती के लोग थे, जिन्हें हमारा ही समाज हेय दृष्टि से देखता था। आज वही नपुंसक समाज उन चन्द लोगों के नाम के पीछे अपना कायरतापूर्ण इतिहास छुपाकर झूठा दम्भ भरता है।

अन्य देशों से नहीं ले पाये सबक-आज इजराइल बुरी तरह शत्रुओं से घिरा हुआ है लेकिन सुरक्षित है क्योंकि वहाँ के प्रत्येक व्यक्ति की देश और धर्म की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी है, लेकिन हमने यह कार्य केवल क्षत्रियों पर छोड़ दिया था, जबकि फौज में भी युद्ध के समय माली, नाई, पेंटर, रसोइया आदि सभी लड़ाका बनकर तैयार रहते हैं। हमने युद्धकाल में भी परिस्थितियों को नहीं समझा और अपनी योजनाएं नहीं बनाईं, अपनी व्यवस्थाएँ नहीं बदलीं। डाॅ. अम्बेडकर जी का यह कथन सोचने पर मजबूत कर देता है कि यदि समाज के एक बड़े वर्ग को युद्ध से दूर नहीं किया गया होता तो भारत कभी गुलाम नहीं बनता।

दुर्भाग्य पीछा नहीं छोड़ता-ज़रा विचार करके देखिए कि मुस्लिमों एवं अंग्रेजों से जिस तरह क्षत्रिय लड़े, अगर पूरा हिन्दू समाज क्षत्रिय बनकर लड़ा होता तो क्या हम कभी गुलाम हो सकते थे ? सामान्य परिस्थिति में समाज को चलाने के लिए उसको वर्गीकृत किया ही जाता है लेकिन विपत्तिकाल में नीतियों में परिवर्तन भी किया जाता है, लेकिन हम इसमें पूरी तरह नाकाम रहे। इसलिए 1000 सालों से दुर्भाग्य हमारे पीछे पड़ा है। अटल जी एक भाषण में कहते हैं कि एक युद्ध जीतने के बाद जब 1000 अंग्रेजी सैनिकों ने विजय जुलूस निकाला था, तो सड़क के दोनों तरफ 20000 भारतीय उनको देखने आए थे। अगर ये 20000 लोग उनको घेरकर पत्थर-डण्डे से भी मारते तो 1000 सैनिकों को वहीं मार देते, लेकिन ये 20 हजार लोग केवल युद्ध के मूकदर्शक थे। आज भी कुछ ख़ास नहीं बदला। मुगलों और अंग्रेजों का स्थान एक ख़ास जमात ने ले लिया है जो अपने आपको सेकुलर के रूप में पेश करते हुए ख़तरनाक गद्दारों की फौज पैदा कर रहा है। लेकिन सबसे बड़ी विडंबना यह है कि हम आज भी बंटे हुए हैं। 100 करोड़ होकर भी मूकदर्शक बने हुए हैं। भले ही कुछ लोग कुछ जागृति पैदा करने में सफल हुए हों, परन्तु बिना सम्पूर्ण जागृति इस देश के दुर्भाग्य का अन्त नहीं होगा।

युवा शक्ति भारत को बनाएगी विश्वगुरु-वक़्त है सम्भलने का, उठकर खड़े होने का, यह शताब्दी हमारी है। इस समय भारत में लगभग 55 करोड़ युवा हैं। हम विश्व की सबसे बड़ी युवा आबादी का देश हैं। हमें सिर्फ़ इन युवाओं को ठीक से आज के ज़माने की शिक्षा एवं प्रशिक्षण देकर उनमें अपने देश के प्रति स्वाभिमान, अपने महापुरुषों, अपनी सभ्यता और संस्कृति पर गर्व का भाव, देश एवं समाज के प्रति कुछ कर गुज़रने की उद्दात्त भावना भर देनी है। उसे सम्पूर्ण विश्व में एक कुशल पेशेवर के रूप में फैला देना है, फिर देखिए हमारे देखते-देखते भारत विश्वगुरु का स्थान फिर हासिल कर लेगा। यह बात मैं सिर्फ़ भावनावश नहीं कह रहा हूँ। यह बात में प्रमाणों के साथ कह रहा हूँ। हमारी युवा आबादी का 0.1 प्रतिशत से भी कम युवा विदेश गया। वहां उसने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है। आज पूरे विश्व में भारत के पेशेवरों को पूर्ण सम्मान के साथ देखा जाता है। वे जिस कम्पनी में जाते हैं सफल होते हैं, कम्पनी को सफलता के नये आयाम पर पहुँचाते हैं और अपने भारत देश का परचम लहराते हैं। आज भारत का पूर्णतया शिक्षित एवं प्रशिक्षित युवा विश्व में सबसे ज़्यादा पसन्द किया जाता है। हमारे पास तकरीबन 20 वर्ष का समय है, जिसमें हम विश्वभर में छा सकते हैं। अपने भारत को विश्वगुरु के स्थान पर फिर पहुंचा सकते हैं। जब हम एक बार मानसिक, शारीरिक और आर्थिक रूप से एक व्यक्ति, समाज एवं राष्ट्र के रूप में मजबूत होंगे, आत्मनिर्भर होंगे, ऋणमुक्त होंगे तो हमारे साथ गै़र हिन्दू ज़ातियां भी स्वतः जुड़ेंगी क्योंकि वह भी अन्ततोगत्वा हमारे भाई ही हैं। कालान्तर में मजबूरी में, लोभ-लालच में या सुरक्षा के डर से उन्होंने अपनी पूजा पद्धति बदली है। उनका और हमारा डी.एन.ए. एक ही है। उन्हें फिर वापस हमारे पास ही आना है, इसलिए हमें अपने इतिहास से सबक लेकर बेकार के झगड़ों में न पड़ते हुए अपने आपको अपने समाज और अपने देश को मजबूत बनाने के काम में लग जाना चाहिए। इसी में सबका भला है।

नहीं है अब समय कोई गहन निद्रा में सोने का।

समय है एक होने का, न मतभेदों में खोने का।

समुन्नत एक हो भारत यही उद्देश्य है अपना,

स्वयं अब जागकर हमको जगाना देश है अपना।

 

 

-डाॅ. अशोक कुमार गदिया

(लेखक मेवाड़ विश्वविद्यालय के कुलाधिपति हैं।)

 

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