भाव से भगवान को भजने से बेड़ा पार हो जाता है 

चित्तौड़गढ़ भक्ति हमेशा भाव से होती है हाथ पैर या आंखों से नहीं जन्म चक्षुऔ से भगवान के दर्शन नहीं होते हैं दर्शन तो अंतर  चक्षुऔ से होते है  भगवान तो भाव के भूखे हैं, प्रभु से यदि कुछ मांगना है तो संसार की तुच्छ वस्तुएं ने मांग कर प्रभु की भक्ति मांगना चाहिए, संसार में जब हजार हाथ देने वाला है तो दो हाथ वाला कितना समेट पाएगा, व्यक्ति को भोजन हमेशा मात्रा में करना चाहिए और भजन की कोई मात्रा नहीं होती क्योंकि भजन शब्द में मात्र है ही नहीं l व्यक्ति के घर में जब कोई विशेष अवसर आता है तो सर्वप्रथम व्यक्ति भक्ति छोड़ देता है l श्री राम द्वारा ,बूंदी रोड, दिल्ली गेट, चित्तौड़गढ़ में श्रीमद् भागवत कथा  व्यास पीठ  पर  अंतर्राष्ट्रीय रामस्नेही संप्रदाय शाहपुरा के  संत  रमता राम  महाराज के दिग्विजय राम विराजमान थे l

Aug 24, 2024 - 21:13
 0  13
भाव से भगवान को भजने से बेड़ा पार हो जाता है 

श्री भागवत महापुराण कथा 

चित्तौड़गढ़ भक्ति हमेशा भाव से होती है हाथ पैर या आंखों से नहीं जन्म चक्षुऔ से भगवान के दर्शन नहीं होते हैं दर्शन तो अंतर  चक्षुऔ से होते है  भगवान तो भाव के भूखे हैं, प्रभु से यदि कुछ मांगना है तो संसार की तुच्छ वस्तुएं ने मांग कर प्रभु की भक्ति मांगना चाहिए, संसार में जब हजार हाथ देने वाला है तो दो हाथ वाला कितना समेट पाएगा, व्यक्ति को भोजन हमेशा मात्रा में करना चाहिए और भजन की कोई मात्रा नहीं होती क्योंकि भजन शब्द में मात्र है ही नहीं l व्यक्ति के घर में जब कोई विशेष अवसर आता है तो सर्वप्रथम व्यक्ति भक्ति छोड़ देता है l श्री राम द्वारा ,बूंदी रोड, दिल्ली गेट, चित्तौड़गढ़ में श्रीमद् भागवत कथा  व्यास पीठ  पर  अंतर्राष्ट्रीय रामस्नेही संप्रदाय शाहपुरा के  संत  रमता राम  महाराज के दिग्विजय राम विराजमान थे l

संसार में भगवान किसी को कष्ट नहीं देता सब अपने प्रारब्ध अनुसार फल भोगते हैं जीवन में सुख-दुख  का  कर्म  बना  रहता है,जीवन में सुख है तो दुख आएगा और दुख है तो सुख आएगा अतः व्यक्ति को भक्ति मार्ग का मार्ग नहीं छोड़ना चाहिए l. व्यक्ति के जीवन में  भक्ति का मंगलाचरण कब होता है  ? भगवान की कथा में रुचि होने पर, तीर्थों के दर्शन करने पर, गुरु वंदन करने पर भक्ति प्राप्त होती हैं, तीर्थ स्थान जब पर्यटन में बदल जाते हैं तब संसार में प्रलय आता है तीर्थ करने का अर्थ होता है उसे देवभूमि से आप कितना लाभ अपने अतः मन में उतार रहे हैं यही तीर्थाटन है संत घर बैठे व्यक्ति को तीर्थो का लाभ देते हैं ,तीर्थ स्थान पर अधिक से अधिक सेवा करना चाहिए ,संतों का सत्संग भक्ति का प्रथम मंगलाचरण हैl संतों का जब साथ होता है तब स्वतः ही व्यक्ति की रुचि कथा में बढ़ जाती है l जीवन में गुरु चार प्रकार से कृपा करते हैं स्मरण कृपा दूसरा शब्द कृपा तीसरा दृष्टि कृपा चौथा स्पर्श कृपा l गुरु की कृपा से ही भक्ति प्राप्त होती है और संसार में सब कुछ सरलता से मिल जाता है परंतु संत कृपा बड़ी दुर्लभ है व्यक्ति को सद्गुरु कृपा तभी प्राप्त होती है जब व्यक्ति के पुण्य बढ़ते हैं l  भक्ति दो प्रकार की होती है से प्रथम  अहेतु  दूसरा अर्प्रतिहता जीवन  में कल्याण का मार्ग भक्ति है भक्ति अहेतु  होनी चाहिए भगवान से कभी कुछ मांगने नहीं जाना चाहिए जब इंसान का स्वार्थ सिद्ध नहीं होता तो वह परमात्मा की सर्वोत्तम सत्ता को भी नकार देता है इंसान इतना स्वार्थी हैl प्रभु से प्रेम करो प्रभु के प्रति समर्पण भाव रखो ,व्यक्ति को चिंता नहीं चिंतन करना चाहिए चिंतन  करने से चिंता स्वतः समाप्त हो जाती हैंl  अप्रतिहता भक्ति:- कभी-कभी व्यक्ति को भक्ति के दौरान बहुत कुछ सहना पड़ता है कभी-कभी भूखा रहना पड़ता है लोगों के ताने भी सहन करने पड़ते हैं बहुत कष्ट सहने पड़ते हैं, मीरा का उदाहरण सामने है मीरा ने भगवान से कभी कुछ नहीं मांगा केवल चरणों की भक्ति ही मांगी थी l  व्यक्ति को परमपिता परमात्मा के सामने कभी कुछ नहीं मांगना चाहिए उसको सब पता है कि किस क्या चाहिए केवल ईश्वर चरणों की भक्ति मांगना चाहिए ताकि व्यक्ति का कल्याण हो सके भगवान की कृपा जब होती है तब व्यक्ति को सब कुछ स्वतः ही मिल जाता हैl भगवान के अवतार का प्रयोजन धर्म को बचाना था धर्म को बचाने के लिए प्रभु बार-बार अवतार लेते हैl वल्लभाचार्य जी से एक भक्त प्रश्न करता है कि इस संसार में श्रेष्ठ कौन है वल्लभाचार्य जी कहते हैं हरी श्रेष्ठ है पुन:  भक्त प्रश्न करता है कि हरि  से  श्रेष्ठ किया है  तो  वल्लभाचार्य  जी  कहते हैं कि हरी से भी श्रेष्ठ  हरि  का नाम है  पुनः  भक्त  पूछता  की हरि  नाम  से   भी  श्रेष्ठ  किया है तो  वल्लभाचार्य जी कहते हैं हरि नाम से भी श्रेष्ठ  संत  प्रसादी है पुन:प्रश्न करता है कि संत प्रसादी  से  किया  श्रेष्ठ है?
  तो वह वल्लभाचार्य कहते हैं कि संत प्रसादी से श्रेष्ठ कुछ भी इस संसार में नहीं हैl  अर्थार्त  संत प्रसादी का एक कण भी श्रेष्ठ होता हैl संत प्रसादी के कारण दासी पुत्र अगले जन्म  में देव ऋषि नारद   कहलाये  यह  है संत प्रसादी की कृपा l  जहां पर महाभारत का अंत होता है वहीं से भागवत का मंगलाचरण होता है जो अपना नहीं है उसे प्राप्त करना महाभारत है और जो अपना है उसे भी त्याग दे वह भागवत हैंl जीवन में रामायण जीना सिखाती है और भागवत मरना l  संसार बंदर की संतान नहीं है बल्कि मनु और शतरूपा की संतान है l आज के कथा प्रसंग में नारद मुनि के पूर्व जन्म की कथा एवं उत्तरा के गर्भ से  राजा  परीक्षित के जन्म,  व ध्रुव चरित्र के बारे में बताया गया

What's Your Reaction?

like

dislike

love

funny

angry

sad

wow

Avinash chaturvedi

+919414112300
I'm Avinash, a dedicated news editor with a keen eye for storytelling and a passion for staying ahead of the latest developments. Armed with a background in journalism and a knack for uncovering hidden gems of information, I strive to present news in an engaging and informative manner. Beyond the headlines, I'm an avid [Hobbies/Interests], and I believe that every story contributes to the rich tapestry of our world. Join me as we dive into the dynamic world of news and discover the stories that shape our lives.