भागवत कथा भक्तों में भक्ति प्रभाव बढ़ाती है
Bhagwat Katha increases the devotional effect among the devotees
महावीर समदानी
भीलवाड़ा । शिवाजी गार्डन आरसी व्यास कॉलोनी में आयोजित भागवत कथा में आचार्य शक्ति देव महाराज ने ध्रुव चरित्र सती चरित्र इत्यादि कथाएं श्रवण कराई शिव पार्वती का विवाह उत्सव मनाया, महाराज ने बताया कि इस भारतवर्ष पर परम चेतना भगवान नारायण की बड़ी ही अलौकिक कृपा है जिस प्रकार हमारे शरीर की रक्षा हमारे पांच प्राण करते हैं ठीक इसी प्रकार से भगवान नारायण पंचनाथ बनकर के भारत भूमि की रक्षा करते हैं चार वेद होते हैं लेकिन भागवत जी को पंचम वेद की संज्ञा दी गई है पूर्व दिशा में ऋग्वेद स्वरूप जगन्नाथ भगवान विराजमान है पश्चिम में सामवेद स्वरूप द्वारकानाथ विराजमान है दक्षिण में रंगनाथ जी यजुर्वेद स्वरूप विद्यमान है एवं अथर्ववेद स्वरूप बद्रीनाथ जी उत्तर में विराजमान है और मध्य में स्वयं श्रीनाथ भगवान भागवत जी का ही स्वरुप है जो इस राजस्थान की पावन भूमि पर विराजमान है
भागवत कथा कोई साधारण ग्रंथ या पोथी नहीं है यह श्रीनाथ भगवान का ही दूसरा स्वरूप है
श्रीनाथ भगवान के प्रमुख द्वादश अंग भागवत जी के द्वादश स्कंध हैं
भागवत जी का प्रथम स्कंध श्रीनाथ भगवान का दाहिना चरण है भागवत जी का द्वितीय स्कंद श्रीनाथ भगवान का वाम चरण है
भागवत जी का तृतीय स्कंध श्रीनाथ भगवान की दाहिनी भुजा है भागवत जी का चौथा स्कंद श्रीनाथ भगवान की बाई भुजा स्वरूप है भागवत जी का पांचवा स्कंध श्रीनाथ भगवान का दाहिना उरु स्वरूप है छठवां स्कंध श्रीनाथ भगवान का वाम उरु स्वरूप है
सातवां स्कंध श्रीनाथ भगवान की दाहिनी हथेली है आठवां स्कंध श्रीनाथ भगवान का दाहिना वक्षस्थल है नवम स्कंद श्रीनाथ भगवान का वाम वक्ष स्थल है दसवां स्कंध श्रीनाथ भगवान का हृदय स्थल है जिसमें गोविंद की लीलाओं का वर्णन है एकादश स्कंध श्रीनाथ भगवान का ललाट स्वरूप है और द्वादश स्कंद भगवान की बाई हथेली है जिस पर श्रीनाथजी ने गिर्राज भगवान को धारण किया था
इस प्रकार से यह द्वादश स्कंध श्रीनाथ भगवान के द्वादश अंग है
कथा मीडिया प्रभारी महावीर समदानी ने जानकारी देते हुए बताया कि महाराज ने कथा में बोलते हुए कहा कि भागवत कथा भक्ति प्रवाह को बढ़ाती है
जिस प्रकार जंगल में शेर गर्जना करता है तो शेर की गर्जना को सुनकर छोटे-मोटे हिंसक जीव भाग जाते हैं ऐसे ही भागवत कथा जब जीव के कानों में पड़ती है हृदय में उतरती है तो हृदय में विराजमान छोटे-मोटे काम क्रोध लोभ मोह अभिमान इत्यादि जो हिंसक पशु हैं वह सभी भाग जाते हैं इसीलिए अपना कल्याण चाहने वाले प्रत्येक व्यक्ति को अपने मन को भागवत जी में और ठाकुर जी के चरणों में अवश्य लगाए रखना चाहिए।
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